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 बायोगैस क्या है और इसका उत्पादन कैसे होता है ?



बायोगैस ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसका उपयोग बार-बार किया जा सकता है. इसका इस्तेमाल घरेलू तथा कृषि कार्यों के लिए भी किया जाता है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं कि बायोगैस क्या है, कैसे बनती है, इसके क्या घटक है और इसका कहां-कहां इस्तेमाल किया जा सकता है इत्यादि. ऊर्जा दुनिया भर में सबसे बड़ा संकट है और खासतौर पर भारत के ग्रामीण इलाकों में जहां वनों की कटाई बढ़ रही है और ईंधन की उपलब्धता कम हो गई है. बायोगैस ऊर्जा का एक ऐसा स्रोत है, जिसका उपयोग बार-बार किया जा सकता है. क्या आप जानते हैं कि इसका इस्तेमाल घरेलू तथा कृषि कार्यों के लिए भी किया जा सकता है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते है कि बायोगैस क्या होती है, कैसे बनती है, इसके क्या घटक है और इसका कहां-कहां इस्तेमाल किया जा सकता है इत्यादि. बायोगैस क्या है? (What is Biogas) बायोगैस सौर उर्जा और पवन उर्जा की तरह ही नवीकरणीय उर्जा स्रोत है. यह गैस का वह मिश्रण है जो ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जैविक सामग्री के विघटन से उत्पन्न होती है. इसका मुख्य घटक मीथेन है, जो ज्वलनशील है जिसे जलाने पर ताप और ऊर्जा मिलती है. हम आपको बता दें कि बायोगैस का उत्पादन एक जैव-रासायनिक प्रक्रिया द्वारा होता है, जिसके तहत कुछ विशेष प्रकार के बैक्टीरिया जैविक कचरे को उपयोगी बायोगैस में बदलते है. इस गैस को जैविक गैस या बायोगैस इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसका उत्पादन जैविक प्रक्रिया (बायोलॉजिकल प्रॉसेस) द्वारा होता है. यह गैस विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने और प्रकाश व्यवस्था के लिए उर्जा की आपूर्ति को पूरा करती है. साथ ही बायोगैस तकनीक अवायवीय पाचन (anaerobic digestion) के बाद उच्च गुणवत्ता वाली खाद प्रदान करती है जो कि सामान्य उर्वरक की तुलना से बहुत अच्छी होती है. क्या आप जानते हैं कि इस तकनीक के माध्यम से वनों की कटाई को रोका जा सकता है और पारिस्थितिकी संतुलन (ecological balance) को प्राप्त किया जा सकता है. बायोगैस विभिन्न घटकों का मिश्रण है. इसके प्रमुख घटक मीथेन (55-75%), कार्बन डाइऑक्साइड (25-50%) और कुछ मात्रा में हाइड्रोजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया इत्यादि. बायोगैस का उत्पादन कैसे होता है? बायोगैस निर्माण की प्रक्रिया दो चरणों में होती है: अम्ल निर्माण स्तर और मिथेन निर्माण स्तर. प्रथम स्तर में गोबर में मौजूद अम्ल निर्माण करनेवाले बैक्टीरिया के समूह द्वारा कचरे में मौजूद बायो डिग्रेडेबल कॉम्प्लेक्स ऑर्गेनिक कंपाउंड को सक्रिय किया जाता है. इस स्तर पर मुख्य उत्पादक ऑर्गेनिक एसिड होते हैं, इसलिए इसे एसिड फॉर्मिंग स्तर कहा जाता है. दूसरे स्तर में मिथेनोजेनिक बैक्टीरिया को मिथेन गैस बनाने के लिए ऑर्गेनिक एसिड के ऊपर सक्रिय किया जाता है. हालांकि जानवरों के गोबर को बायोगैस प्लांट के लिए मुख्य कच्चा पदार्थ माना जाता है, लेकिन इसके अलावा मल,मुर्गियों की बीट और कृषि जन्य कचरे का भी इस्तेमाल किया जाता है. आइये अब बायोगैस संयंत्र के भागों के बारे में अध्ययन करते हैं बायोगैस संयंत्र के दो मुख्य मॉडल हैं : फिक्स्ड डोम (स्थायी गुंबद) टाइप और फ्लोटिंग ड्रम टाइप उपर्युक्त दोनों मॉडल के निम्नलिखित भाग होते हैं : 1) डाइजेस्टर: यह बायोगैस संयंत्र का महत्वपूर्ण भाग है जो धरातल के निचे बनाया जाता है एवं बीच में एक विभाजन दिवार से दो कक्षों में बांटा जाता है. यह सामान्यत: सिलेंडर के आकार का होता है और ईंट-गारे का बना होता है. इसमें विभिन्न तरह की रासायनिक प्रतिक्रिया होती है और गोबर व पानी के घोल का किण्वित (fermentation) होता है. 2) गैसहोल्डर या गैस डोम: यह एक स्टील ड्रम के आकार का होता है जिसे डाइजेस्टर पर उल्टा इस प्रकार से फिक्स किया जाता है ताकि ये आसानी से निचे या ऊपर की दिशा में फ्लोट हो सके. इसी डोम के शीर्ष पर एक गैस होल्डर लगा होता है जो पाइप द्वारा स्टोव से जुड़ा होता है. गैस जब बनती है तो सबसे पहले डोम में एकत्रित होती है और फिर बाद में होल्डर के द्वारा पाइपलाइन के माध्यम से गैस चूल्हे के बर्नर तक पहुंचती है. 3) स्लरीमिक्सिंगटैंक: इसी टैंक में गोबर को पानी के साथ मिला कर पाइप के जरिये डाइजेस्टर में भेजा जाता है. 4) आउटलेटटैंक और स्लरीपिट: सामान्यत: फिक्स्ड डोम टाइप में ही इसकी व्यवस्था रहती है, जहां से स्लरी को सीधे स्लरी पिट में ले जाया जाता है. फ्लोटिंग ड्रम प्लांट में इसमें कचरों को सुखा कर सीधे इस्तेमाल के लिए खेतों में ले जाया जाता है. 5) ओवर फ्लो टैंक: यह टैंक डाइजेस्टर में किण्वित हुए घोल को बहार निकालने में काम आता है. 6) वितरण पाइप लाइन: जरुरत की जगह पर गैस का वितरण करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. इस बात का भी ध्यान दिया जाता है कि वितरण पाइप लाइन ज्यादा लम्बी ना हो. यह डाइजैस्टर एक बंद गुंबदनुमा यानी डोम टाइप होता है और इसका निर्माण धरातल के भीतर स्थाई रूप से किया जाता है. डाइजैस्टर के उपरी भाग में गैस एकत्रित होती है. गैस के एकत्रित होने पर शिरे-शिरे ऊपर के भाग में दबाव बढ़ता है इसलिए डाइजैस्टर की क्षमता 20 घन मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए. बायोगैस उत्पादन के फायदे - इसके उपयोग से प्रदूषण नहीं होता है यानी यह पर्यावरण के लिए अच्छी है. - इस गैस के उत्पाग्न के लिए कच्चे पदार्थों की आवश्यकता होती है और ये गाँवों में प्रचूर मात्रा में मिल जाते हैं. - बियोगास के उत्पादन के साथ-साथ खाद भी मिलता है जिससे फसलों की उपज को बढ़ती है. - गांवों में लकड़ी और गोबर के गोयठे का इस्तेमाल करने से धुएं की समस्या होती है, वहीं बायोगैस से ऐसी कोई समस्या नहीं होती. - यह प्रदूषण को भी नियंत्रित रखता है, क्योंकि इसमें गोबर खुले में पड़े नहीं रहते, जिससे कीटाणु और मच्छर नहीं पनप पाते हैं. - बायोगैस के कारण लकड़ी की बचत होती है, जिससे पेड़ काटने की जरूरत नहीं पड़ती.

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