देवभूमि में चैत्र और वैशाख के महीनों में शीत को विदा कर लौटती सुगन्धित हवा, खिले हुए बाग-बगीचे, वातावरण में गूँजती कोयलों और अन्य पक्षियों की आवाजें- सब प्रकृति के दूत बन जाते हैं मानो ये सब भी किसी विशेष दिवस की प्रतीक्षा में बैठे हो , खैर पहले एक छोटा स्मरण - 90 के दशक में मोबाइल फोन ,सीडी इत्यादि कुछ नहीं हुआ करते थे संगीत सुनने का सिर्फ एक माध्यम था टेप रिकॉर्डर या फिर दूरदर्शन पर आने वाला चित्रहार, हमें याद है कि पिताजी टेप रिकॉर्डर में गोपाल बाबू गोस्वामी जी के खूब गाने सुना करते थे वे उनके ही नहीं पूरे कुमाऊं के पसंदीदा कलाकार थे और आज हमारे भी पसंदीदा कलाकार है। 90 के दशक में गोपाल बाबू गोस्वामी जी ने कई हिट गाने दिए उन्हीं में से एक गाना बहुत प्रसिद्ध हुआ "अलबेरे बिखोति मेरी दुर्गा हरे गे चान चान बेर मेरी यो कमरा पटेगे " अर्थात- इस वर्ष बिखोति के मेले में मेरी प्रिय दुर्गा गुम हो गई है और मैं उसे ढूंढते -ढूंढते इतना परेशान हो गया हूं कि मेरी कमर ही थक गई है ।
आज इस लेख के माध्यम से मैं आपको उत्तराखंड के इसी लोकपर्व बिखोति के बारे में बताऊंगा।उत्तराखंड अपनी भव्य पर्वत श्रृंखलाओं, घने वनों, चंदनी रातों के साथ विख्यात है। यह एक अद्भुत राज्य है जो समृद्ध प्राकृतिक विरासत और धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों का घर है। हमारी यह देवभूमि प्राकृतिक सुंदरताओं से भरपूर है।यह देव स्थल माँ पार्वती का मायका और भोलेनाथ का घर है यहाँ चंहु और पर्वतीय परिदृश्य, घने वन, गहरी घाटियों, रंग-बिरंगे फूल प्रकार नयन सरीखी शांत झीलें हैं। यह पर्वतीय अंचल अद्भुत जंगल और वनस्पतियों के लिए भी जाना जाता है जो उत्तराखंड की सुंदरता को दुनिया भर में मशहूर बनाते हैं।उत्तराखंड राज्य में अनेक लोकपर्व मनाएं जाते हैं, जो हमारी संस्कृति और परंपराओं को दर्शाते हैं। मैं पूरे यकीन से कह सकता हूं कि पूरे विश्व में इतने तीज त्यौहार शायद ही कहीं और मनाये जाते होंगे जितने हमारी देवभूमि में मनाए जाते हैं, उत्तराखंड देवभूमि में प्रत्येक सक्रांति के दिन कोई ना कोई त्यौहार जरूर होता है ये त्यौहार मुख्यतः कृषि प्रधान होते हैं ,उत्तराखंड एक कृषि आधारित राज्य है जहाँ लोक पर्वों का अत्यंत महत्व होता है। यहाँ कृषि की बुआई और कटाई के लिए अनुष्ठान किए जाते हैं। इन पर्वों में लोग देवताओं के पूजन और धर्मिक अनुष्ठानों के लिए एक साथ आते हैं। यहाँ की स्थानीय संस्कृति, परंपरा और धर्म से समृद्ध रहती है। इन पर्वों में लोग एक दूसरे के साथ मिलकर समुदाय के भावनाओं को बढ़ावा देते हैं। हजारों पर्यटक इन पर्वों को देखने यहाँ आते हैं और इन्हें संग्रहीत करते हैं। यह एक अनूठा अनुभव है जो उत्तराखंड को अन्य राज्यों से अलग बनाता है। बिखोती इन्ही लोकपर्वो में से एक लोक पर्व है।
यह त्यौहार प्रतिवर्ष वैशाख माह के प्रथम दिवस विषुवत संक्राति को पुरे उत्तराखंड में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है। विषुवत संक्रांति एक हिंदू त्योहार है जो भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है। यह त्योहार हिंदू कैलेंडर में सौर मास के बैशाख मास के अंत में संपादित होता है और अप्रैल-मई के बीच के समय मनाया जाता है। विषुवत संक्रांति को कई नामों से जाना जाता है जैसे बैसाखी, मेसादी, बहुजुनमा, रोहिणी, रजनी आदि। विषुवत संक्रांति के दिन लोग सूर्य के उदय से पहले स्नान करते हैं और फिर सूर्य देव की पूजा करते हैं। विषुवत संक्रांति का बहुत महत्व है क्योंकि इस दिन सूर्य उत्तरी गोलार्ध में जाता है जिससे दिन का समय बढ़ने लगता है। यह भारत की ऋतुओं में परिवर्तन का अंक होता है और समय के साथ साथ ऋतुओं में भी बदलाव आ जाता है ,विषुवत संक्रांति को विष का निदान करने वाली संक्रांति भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है की इस दिन दान स्नान से खतरनाक से खतरनाक विष का निदान हो जाता है। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि इस दिन जिन बच्चो या बड़ो को पेट की समस्या रहती थी उन्हें तार नामक एक यंत्र से मंत्रो के उच्चारण संग दागा जाता था जिनसे उनके पेट के मर्ज ठीक हो जाया करते थे , किसी को यदि गले की बीमारी भी हो रही हो तो इसी तार को गरम करने के उपरांत उस पीड़ादायक स्थान पर दागने से कष्ट का निवारण हो जाया करता था । कालांतर में यह ज्ञान सही तरीके से हस्तांतरित ना होने के कारण विलुप्त हो गया है ।विषुवत संक्रांति के दिन गंगा स्नान का महत्व बताया गया है। बिखौती का मतलब भी कुमाउनी में विष का निदान होता है।
इसी त्यौहार के समकक्ष भारतवर्ष में विभिन्न स्थानों में कृषि आधारित त्यौहार मनाये जाते है जैसे -बैसाखी - सिख समुदाय का एक महत्वपूर्ण त्यौहार होता है जो भारत में अप्रैल महीने में मनाया जाता है ,पोयला बोहाग बिहु - असम का यह त्यौहार अप्रैल महीने में मनाया जाता है जिसमें स्थानीय लोग नया साल मनाते हैं।मेघालय त्यौहार (मेघालय): इस त्यौहार को मेघालय राज्य में हर साल अप्रैल महीने में मनाया जाता है और इसे चेप्तूम त्यौहार भी कहा जाता है। इस त्यौहार का मुख्य उद्देश्य हरे बैंगन, चावल और अन्य स्थानीय फसलों की उपज को धन्यवाद देना होता है।
उत्तराखंड का लोक पर्व बिखोती भी एक कृषि प्रधान त्यौहार है यह समय पहाड़ में फसल कटाई का है इस समय रवि की फसल की कटाई प्रारंभ होती है किसान अपने इष्ट देव को भोग लगा कर अच्छी फसल की इच्छा रखते है।
बिखोती पर्व का मुख्य उद्देश्य कृषि की उपज को धन्यवाद देना होता है। इस दिन सभी लोग अपने खेत में जाकर फल-फूल की उपज को धन्यवाद देते हैं और एक दूसरे के साथ मिठाई बाटते हैं। इसके अलावा, लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं।इस विशेष दिवस पर गांव घरों में विशेष पकवान बनाने की परंपरा रही है विशेष रूप से आज खीर जरुर बनाई जाती है। आज जिनके घर में दुधारू पशु ( धीनाई ) है वे खीर बनाते हैं और जिनके घर में दुधारू पशु नहीं होते है उनके घर खीर बांटी जाती है ।
बिखोती पर्व के कई संस्करण हैं यह पर्व विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है परंतु सुरस अलग अलग होने से भी त्यौहार का मूल समान ही रहता है द्वाराहाट विकासखंड के स्याल्दे का बिखोती मेला उत्तराखंड में प्रसिद्ध बिखोती मेला स्थल है । स्यालदे बिखौती पर्जोव भगवान शिव और उनकी पत्नी शक्ति के मिलन का प्रतीक है। यहाँ इस पर्व को पुरुषत्व और स्त्रीत्व के मिलन के जश्न के रूप में मनाया जाता है। स्यालदे बिखौती उत्सव उत्तराखंड के लिए अद्वितीय है और दो मंदिरों - विभांडेश्वर में तथा शक्ति के मंदिर शीतला देवी के प्रांगण में मिलाकर मनाया जाता हैओढ़ा
पूर्व काल में इस स्थान में हुए दो धड़ो के मध्य खूनी संघर्ष की कहानी कहता ओढ़ा भेटने की रस्म स्याल्दे बिखोती का प्रमुख आकर्षण व पहचान है ऐसा मान्यता है कि दो दलों के बीच जब खूनी संघर्ष हुआ तो एक गांव के व्यक्ति द्वारा दूसरे गांव के व्यक्ति का सर काट कर भूमि पर गाड़ दिया गया और स्मृति चिन्ह के रूप में उस स्थान पर एक बड़ा पत्थर स्थापित कर दिया गया इसी पत्थर को ओढ़ा कहा जाता है और इसे भेंटने का तात्पर्य है इस स्मृति चिन्ह से मिलते हुए मेला परिसर की ओर आगे बढ़ना । यह मेला सांस्कृतिक व व्यापारिक दृष्टी से अत्यंत महत्व पूर्ण है ।
प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में प्रतिभाग करें एवं सर्टिफिकेट भी प्राप्त करें https://forms.gle/CNevPjXnpm1oT6Dr7
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