वट सावित्री व्रत: मान्यता और महत्व
वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना के लिए रखती हैं। इस पर्व को ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है, जो कि दिनांक 19 मई 2023 को है। इस दिन सावित्री व्रत और सत्यवान की कथा का पाठ किया जाता है और सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस व्रत के द्वारा महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।इस व्रत के द्वारा महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु और उनके साथीत्व की कामना करती हैं। यह व्रत उनके पतियों के लिए आराम, खुशहाली, और शुभ समृद्धि की प्राप्ति का एक उपाय माना जाता है। हिन्दू धर्म में वट सावित्री व्रत को अत्याधिक मान्यता और महत्व प्राप्त है क्योंकि यह एक पत्नी की पति के प्रति वफादारी, प्रेम, और पूजा का प्रतीक है। इसके माध्यम से, महिलाएं अपने पतियों के लिए विशेष मान्यता और प्रेम व्यक्त करती हैं और उन्हें लंबी आयु, स्वास्थ्य, और भाग्यशाली जीवन की कामना करती हैं। इस व्रत का पालन करने से वृद्धावस्था में भी स्वास्थ्य और सुख की प्राप्ति होती है। वट सावित्री व्रत को मनाने से महिलाओं को अपने पतियों के साथीत्व और परम धार्मिक मान्यताओं की प्राप्ति होती है। यह व्रत उन्हें सम्पूर्ण परिवारिक सुख और समृद्धि की प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है और उन्हें स्वास्थ्य, धन, सुख, और सद्गति की प्राप्ति के लिए आशीर्वाद प्रदान करता है। इस व्रत का पालन करने से महिलाएं अपने पतियों के प्रति वफादारी और प्रेम का प्रतीक बनती हैं और उन्हें परिवार की समृद्धि और सुख की प्राप्ति होती है।
वट वृक्ष का महत्व:
वट वृक्ष, जिसे बरगद भी कहा जाता है, हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है। शास्त्रों के अनुसार, वट में तीनों देवताओं - ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है। वट वृक्ष की पूजा और व्रत कथा का सम्पन्न करने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है और इस पूजा के द्वारा वृद्धावस्था में भी दीर्घायु हासिल की जा सकती है। वट वृक्ष को ब्रह्मलोक का प्रतीक माना जाता है और उसे पूजनीय माना जाता है। इसलिए, वट सावित्री व्रत में वट वृक्ष की पूजा विशेष महत्व रखती है।
वट सावित्री व्रत की कथा
वट सावित्री व्रत में सावित्री कथा का पाठ किया जाता है, जिसमें सावित्री और सत्यवान की कहानी सुनाई जाती है। कथा के अनुसार, सावित्री ने पति सत्यवान की रक्षा के लिए यमराज से वरदान मांगा था । इस कथा को सुनकर, सुहागिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु और सुख-शांति की कामना करती हैं।
बहुत पहले की बात है अश्वपति नाम का एक सच्चा ईमानदार राजा था। उसकी सावित्री नाम की बेटी थी। जब सावित्री शादी के योग्य हुई तो उसकी मुलाकात सत्यवान से हुई। सत्यवान की कुंडली में सिर्फ एक वर्ष का ही जीवन शेष था। सावित्री पति के साथ बरगद के पेड़ के नीचे बैठी थी। सावित्री की गोद में सिर रखकर सत्यवान लेटे हुए थे। तभी उनके प्राण लेने के लिये यमलोक से यमराज के दूत आये पर सावित्री ने अपने पति के प्राण नहीं ले जाने दिए। तब यमराज खुद सत्यवान के प्राण लेने के लिए आते हैं।
सावित्री के मना करने पर यमराज उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री वरदान में अपने सास-ससुर की सुख शांति मांगती है। यमराज उसे दे देते हैं पर सावित्री यमराज का पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज फिर से उसे वरदान मांगने को कहते हैं। सावित्री अपने माता पिता की सुख समृद्धि मांगती है। यमराज तथास्तु बोल कर आगे बढ़ते हैं पर सावित्री फिर भी उनका पीछा नहीं छोड़ती है। यमराज उसे आखिरी वरदान मांगने को कहते हैं तो सावित्री वरदान में एक पुत्र मांगती है। यमराज जब आगे बढ़ने लगते हैं तो सावित्री कहती हैं कि पति के बिना मैं कैसे पुत्र प्राप्ति कर सकती हूँ। इसपर यमराज उसकी लगन, बुद्धिमत्ता देखकर प्रसन्न हो जाते हैं और उसके पति के प्राण वापस कर देते हैं।
शिक्षक भास्कर जोशी
(शिक्षा से सूचना तक )
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