गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर एक भारतीय उपन्यासकार, कवि, नाटककार,शिक्षाविद् और संगीतकार थे। उन्होंने अपने जीवन के दौरान एक से बढ़कर एक योगदान दिया। उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को विश्व के समक्ष प्रस्तुत किया और उनकी रचनाओं में अमूल्य संदेश थे। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को 1913 में उनके काव्य-संग्रह 'गीतांजलि' के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जो भारत में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले व्यक्ति थे। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी द्वारा रचित 'जन गण मन' और 'आमर शोनार बांग्ला' दो देशों के राष्ट्रगान हैं। 'जन गण मन' भारत के राष्ट्रगान के रूप में आज भी महानतम स्थान पर है और 'आमर शोनार बांग्ला' बांग्लादेश के राष्ट्रगान के रूप में उपयोग किया जाता है। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के जीवन और उनके कामों से जुड़ी कुछ रोचक बातें हैं जिनकी चर्चा इस लेख में कर रहे है । उन्होंने अपनी रचनाओं को लेकर विश्व भर में यात्राएं की और उनके कार्यों का प्रभाव समाज पर था। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध शान्तिनिकेतन विश्वविद्यालय की स्थापना की, जो आज भी भारत में एक प्रमुख विश्वविद्यालय है जिसे अब - विश्वभारती विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है जहां लगभग 6000 छात्र पढ़ते हैं,ये जगह कोलकाता से 180 किमी उत्तर की ओर पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में स्थित है।
गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने एक नए फ़ॉर्मेट स्कूल प्रणाली की शुरुआत की जिसे 'शांतिनिकेतन' नामक स्कूल के रूप में जाना जाता है। इस स्कूल का उद्देश्य छात्रों को एक स्वतंत्र, नवाचारी और आध्यात्मिक विद्यालय अनुभव प्रदान करना था। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी एक संगीत प्रेमी भी थे और उन्होंने कई गीतों का निर्माण किया था। उन्होंने अपनी शैली में वेस्टर्न और भारतीय संगीत का विवेकपूर्ण मिश्रण बनाया था। उनके संगीत कार्यों में शांति, प्रेम, समझौता और ध्यान के संदेश होते हैं। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर भारतीय संस्कृति और विरासत के लिए एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे। उनकी रचनाएं, संगीत और उनके संदेश समाज के लिए अमूल्य हैं।गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर एक महान शिक्षाविद् और संस्कृति के प्रणेता थे। उनके शिक्षा दर्शन एवं उनके शिक्षा में योगदान के बारे में बात करें तो, उन्होंने एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण वाली शिक्षा को बढ़ावा दिया था। उन्होंने अपने शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों को संतुलित विकास देने का रखा था।
गुरुदेव ने शिक्षा को उत्तम जीवन के लिए एक साधन के रूप में देखा था। उन्होंने शिक्षा को छात्रों को जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने वाली शक्ति देने वाला एक माध्यम माना था। गुरुदेव ने यह भी बताया कि शिक्षा छात्रों के अंदर स्वाभाविक रूप से मौजूद गुणों को विकसित करती है जो उन्हें सफलता की ओर ले जाते हैं। गुरुदेव का शिक्षा में योगदान उनके संस्थापित की गई विश्वभारती विश्वविद्यालय के माध्यम से बहुत अधिक था। इस विश्वविद्यालय का उद्देश्य छात्रों को संपूर्ण शिक्षा प्रदान करने के साथ साथ उन्हें आध्यात्मिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से भी संपन्न करना था। इस विश्वविद्यालय के माध्यम से गुरुदेव ने अनेक विद्यार्थियों को शिक्षा दी और उन्हें अपने जीवन में सफल बनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने विद्यार्थियों के अंदर आत्मविश्वास और स्वाधीनता का संचार किया जिससे उन्हें अपने सपनों की पूर्ति करने में मदद मिली। गुरुदेव के शिक्षा दर्शन में व्यक्तिगत विकास का बहुत महत्व था। उन्होंने यह बताया था कि हर छात्र का स्वभाव अलग-अलग होता है और उन्हें उनके स्वभाव के अनुसार शिक्षा मिलनी चाहिए। इसलिए उन्होंने शिक्षा को व्यक्तिगत विकास का माध्यम माना था। उन्होंने शिक्षा को सिर्फ ज्ञान प्राप्त करने के लिए नहीं बल्कि समस्याओं का समाधान करने के लिए भी माना था। गुरुदेव की शिक्षा दर्शन में स्वतंत्रता व सामंजस्य का भी महत्व था। उन्होंने यह बताया था कि शिक्षा छात्रों को स्वतंत्र बनाती है जो अपने जीवन में सफल होने केलिए अत्यंत आवश्यक होती है। गुरुदेव ने संस्कृति व समाज के महत्व को भी बताया था। उन्होंने शिक्षा को एक ऐसा माध्यम माना था जो समाज को सकारात्मक बनाता है और सभी लोगों को एक साथ लाता है। उन्होंने समाज सेवा और नैतिकता के महत्व को भी बताया था जो शिक्षा के भावी नेतृत्व के लिए बहुत जरूरी होते हैं। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के शिक्षा दर्शन से भारत के शैक्षणिक क्षेत्र में क्रांति आई। उन्होंने शिक्षा के महत्व को समझाने के साथ-साथ शिक्षा के लिए उच्च मानकों का प्रचार किया था। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से स्वदेशी आन्दोलन और स्वाधीनता के विचारों को भी फैलाया। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी का मानना था कि प्रकृति मानव तथा अंतरराष्ट्रीय संबंधों में परस्पर मेल एवं प्रेम होना चाहिए। वे सच्ची शिक्षा के द्वारा वर्तमान के सभी विषयों में मेल और प्रेम की भावना विकसित करना चाहते थे। टैगोर को यह विश्वास था कि शिक्षा प्राप्त करते समय बच्चों को स्वतंत्र वातावरण मिलना परम आवश्यक होता है।
वे रूसो की तरह प्रकृति को बच्चों की शिक्षा के सर्वोत्तम साधन मानते थे। टैगोर ने लिखा है कि "प्रकृति के पश्चात बच्चों को समाजिक व्यवहार की धारा के संपर्क में आना चाहिए।" टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन करते हुए डॉक्टर एस.बी मुखर्जी ने लिखा है कि टैगोर आधुनिक भारत में शैक्षिक पुनरुत्थान के सबसे महान प्रवक्ता थे। वे अपने देश के सामने शिक्षा के सर्वोच्च आदर्शों को स्थापित करने के लिए निरंतर संघर्ष करते रहे और अपनी शिक्षा संस्थाओं में शैक्षिक प्रयोग किए जिनसे उन्हें आदर्श का सजीव प्रतिबिंब मिला। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने शिक्षा के साथ-साथ विचारों और संस्कृति के महत्व को भी उजागर किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति की महत्ता को स्वीकार किया और उसे अपनी शिक्षा दर्शन में समाहित करने का प्रयास किया।
गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने शिक्षा को संसार के समस्त चुनौतियों से निपटने का साधन माना था। वे शिक्षा के माध्यम से संसार को बेहतर बनाने का सपना देखते थे। टैगोर की शिक्षा दर्शन की एक मुख्य विशेषता यह थी कि वे शिक्षा को संगठित रूप से प्रदान करने की बजाय स्वतंत्रता और स्वाधीनता के आधार पर शिक्षा की अवधारणा को प्रोत्साहित करते थे।टैगोर के शिक्षा दर्शन ने अनेक शैक्षणिक संस्थाओं और शिक्षाविदों को प्रभावित किया। उनकी शिक्षा दर्शन के आधार पर संस्कृति, आधुनिकता और मानवता को संयुक्त रूप से समझने की कोशिश की जाती है। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने शिक्षा को सिद्धांत और व्यवहार दोनों का संगम माना था। उनके शिक्षा दर्शन में उदारता, विस्तारवाद और अनुशासन के मेल को महत्वपूर्ण रूप से दृष्टिगत किया गया था। गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के शिक्षा दर्शन का मूल उद्देश्य था कि शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति को संसार के सभी पहलुओं को समझने की क्षमता प्राप्त होनी चाहिए। उन्होंने शिक्षा को विकास और स्वयंसेवा का माध्यम बताया था। उनके द्वारा चलाई गई शिक्षा संस्थाओं में आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ संस्कृति के अध्ययन को भी महत्व दिया जाता था। टैगोर ने अपने शिक्षा दर्शन में मानवता को एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया था। उन्होंने सामाजिक न्याय, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और स्वाधीनता के महत्व को भी उजागर किया था। उन्होंने शिक्षा के माध्यम से विभिन्न स्तरों पर मानव उत्थान की कोशिश की थी और उन्होंने सभी लोगों के लिए शिक्षा का अधिकार माना था , शिक्षा को जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग माना था जो समस्त समाज के लिए आवश्यक होता है। उन्होंने शिक्षा को एक संसाधन के रूप में देखा था जो समस्त समाज के सदस्यों के लिए उपलब्ध होना चाहिए। उन्होंने शिक्षा को एक सोच के रूप में देखा था जो समस्त समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी ने शिक्षा के महत्व को समझाने के लिए कई उदाहरण भी दिए। उन्होंने कहा था कि शिक्षा व्यक्ति के मस्तिष्क को खोलती है, उसे ज्ञान का संचार करती है और उसे स्वतंत्र बनाती है। उनका कहना था कि शिक्षित लोग समाज में अधिक सक्रिय होते हैं, समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं और समस्याओं का समाधान ढूंढने में समर्थ होते हैं। इस प्रकार, गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की शिक्षा दर्शन ने शिक्षा को मानवता के उत्थान और समस्त समाज के विकास का माध्यम बनाया। उन्होंने शिक्षा को समस्याओं का समाधान ढूंढने और समस्त समाज के साथ सामंजस्यबनाने के लिए भी एक महत्वपूर्ण संसाधन माना। उनका यह दर्शन न केवल शिक्षा के लिए बल्कि भारतीय समाज और मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी है। उन्होंने शिक्षा को ज्ञान, संस्कृति और मूल्यों का संचार करने का एक माध्यम बनाया था जो समाज को सकारात्मक बनाने में मदद करता है।
गुरु देव रवीन्द्रनाथ टैगोर जी का शिक्षा दर्शन आज भी अत्यंत महत्वपूर्ण है और उनके विचार शिक्षा के क्षेत्र में नए सोच और नए पहलुओं को जन्म देने में मदद करते हैं। उनके दर्शन के अनुसार, शिक्षा का मूल उद्देश्य मनुष्य को न केवल ज्ञान देना होता है, बल्कि उसे अपने विचारों, आदर्शों और मूल्यों का भी संचार करना होता है जो समस्त समाज के उत्थान में मदद करता है।
गुरुदेव के शिक्षा दर्शन आज भी हमें प्रेरित करते हैं। उनके द्वारा बताए गए मार्गदर्शन से हम समाज के लिए काम करते हुए व्यक्तिगत विकास करते हुए आत्मनिर्भर और सकारात्मक जीवन जीने के लिए प्रेरित होते हैं।
जोदी तोर डाक सुने केउ ना आसे तोबे एकला चलो रे ।
एकला चलो, एकला चलो,एकला चलो रे,
("यदि आपकी पुकार सुनने कोई न आए तो अकेले चले जाना" )
शिक्षक भास्कर जोशी
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