परम्पराएं और कार्यविधियाँ परम्परागत ज्ञान कहलाते हैं। आधुनिकता और बेहतर सुविधाओं की चाह के कारण हमारे गाँवों से लगातार पलायन हो रहा है, इसके अपने बहुत से नुकसान हैं पर एक नुकसान जो मुझे सबसे ज्यादा
लगता है वह है परंपरागत ज्ञान का शनैः शनै विलोपन होते जाना।
हमारे तीज त्योहार पूजा पाठ की विधियां संस्कृति बहुत कुछ पलायन के कारण विलुप्त होते जा रहा हैं। एक अध्यापक और देवभूमि का मूल निवासी होने के कारण यह मेरा नैतिक कर्तव्य है कि अपनी मातृभूमि का वह सब ज्ञान जो मेरी स्मृति में है और जो पुरखों से मिला है उसे विद्यार्थियों को हस्तांतरित करूं।
इसी कड़ी में एक सुगन्धित पादप के बारे में बच्चों को बताया गया। इस पौधे का स्थानीय नाम समुयुण या सम्यो है। इसका वैज्ञानिक नाम वेलेरियाना जटामानसी जोन्स (Valeriana jatamansi Jones ) है, यह केप्रीफोलियासी कुल (family Caprifoliaceae ) का पौधा है ।
सुगंध के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर पौधा कीट भगाने व कृमिरोधी गुणों के लिए भी जाना जाता है। यदि आपने कभी उत्तराखंड के जंगलों का भ्रमण किया हो तो आपको जंगल की एक आकर्षित करने वाली सुगंध का एहसास अवश्य हुआ होगा यह दिव्य सुगंध और किसी की नहीं इसी पादप समुयुण या सम्यो की है, अभी कुछ वर्ष पूर्व तक हमारे पुरखे इसका प्रयोग धूप अगरबत्ती और पर को सुगंधित करने के लिए करते थे, पर आज के युवा पारंपरिक ज्ञान को सहेजने व उसकी रक्षा के महत्व को नहीं समझ रहे हैं। विश्व के बड़े बड़े देश भी अपना पारम्परिक ज्ञान लिपिबद्ध कर रहे हैं, पर हमारे देश में अभी इस स्तर पर बहुत कम कार्य हुआ है। प्रयास है कि कम से कम नई पीढ़ी में पारम्परिक ज्ञान का ह्रास न हो ।
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