सुप्रीम कोर्ट ने बीएड-योग्य व्यक्तियों को प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देने वाला आदेश रद्द कर दिया
सुप्रीम कोर्ट ने बीएड-योग्य व्यक्तियों को प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देने के राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के फैसले को रद्द कर दिया है। अदालत ने फैसला सुनाया कि निर्णय प्रक्रियात्मक रूप से त्रुटिपूर्ण था और बीएड प्राथमिक शिक्षकों के लिए निर्धारित योग्यता नहीं है।
एनसीटीई ने मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय के निर्देश के बाद 2018 में यह निर्णय लिया था। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने तर्क दिया था कि बीएड प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को अतिरिक्त कौशल और ज्ञान प्रदान करेगा। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इस दावे के समर्थन में कोई सबूत नहीं दिया है।
अदालत ने यह भी कहा कि एनसीटीई ने स्वतंत्र रूप से इस मुद्दे पर विचार नहीं किया है कि प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के लिए बीएड योग्यता होनी चाहिए या नहीं। इसके बजाय, एनसीटीई ने केवल मानव संसाधन विकास मंत्रालय के निर्देश का पालन किया था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला उन लोगों की जीत है जिन्होंने तर्क दिया है कि बीएड प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों के लिए आवश्यक योग्यता नहीं है। यह निर्णय सरकार को यह संदेश भी देता है कि वह अपने निर्णयों के समर्थन में कोई सबूत दिए बिना नियामक निकायों को आदेश नहीं दे सकती।
यहां मामले के बारे में कुछ अतिरिक्त विवरण दिए गए हैं:
* राजस्थान सरकार ने 2021 में प्राथमिक कक्षा के शिक्षकों के लिए आयोजित शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) में बीएड उम्मीदवारों को शामिल होने की अनुमति नहीं दी।
* कुछ बीएड-योग्य अभ्यर्थियों ने इसे राजस्थान उच्च न्यायालय में चुनौती दी और तर्क दिया कि राज्य सरकार ने एनसीटीई की नीति का उल्लंघन किया है।
* हाई कोर्ट ने एनसीटीई की नीति को रद्द कर दिया, जिसके बाद मामला शीर्ष अदालत में आया.
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों की योग्यता से जुड़े भविष्य के मामलों के लिए एक मिसाल कायम करता है। यह निर्णय नियामक निकायों द्वारा स्वतंत्र निर्णय लेने के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।
शिक्षक भास्कर जोशी
(शिक्षा से सूचना तक )
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