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देवभूमि उत्तराखण्ड के अमर सपूत, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी की पुण्यतिथि पर कोटिश: नमन। छात्रों के लिए लेख और प्रश्नोत्तरी (QUIZ) प्रतियोगिता ।


 

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली: एक कर्मयोगी

देवभूमि उत्तराखंड में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी जैसे कर्मयोगी का जन्म हुआ। जिन्होंने अपनी कर्मठता और देशभक्ति से देश को एक नई दिशा दी। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसंबर 1891 को पौड़ी जिले के चौथान पट्टी के गावं रोनौसेरा में हुआ था। उनके पिता जाथली सिंह एक किसान और वैद्य थे। बचपन में उन्हें स्कूल जाने का मौका तो नहीं मिला लेकिन एक ईसाई अध्यापक से प्राथमिक शिक्षा प्राप्ति की। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का असली नाम चंद्र सिंह भंडारी था।

18 वर्ष की आयु में चंद्र सिंह गढ़वाल राइफल के 2 /39 बटालियन में भर्ती हो गए। अंग्रेज सैनिक के रूप में 1915 में मित्र राष्ट्रों की तरफ लड़ने के लिए फ़्रांस गए। वहां फ्राँसियों पर अंग्रेजो के अत्याचारों से उनकी अंग्रेज सरकार के लिए सहानुभूति कम हो गई। 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने यहाँ की कई पलटने तोड़ दी। अनेक गढ़वाली सैनिको निकाल दिया। कई पदाधिकारियों को सैनिक बना दिया। अंग्रेजो के इस भेदभाव निति से चंद्र सिंह भी हवलदार से सैनिक बन गए। इस दौरान देश और विश्व के घटनाक्रम को उन्होंने नजदीक से देखा। इस दौरान गाँधी जी के संपर्क में आये उनके अंदर देशप्रेम की इच्छा बलवती हो गई। उत्तराखंड में गांधी जी के कई सभाओं में उन्होंने अपनी छुटियों के दौरान भाग लिया। चंद्र सिंह सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर प्रभावित हुए। इसके बाद वे पक्के आर्यसमाजी बन गए। इस दौरान भारत में अंग्रेजों के खिलाफ घटित घटनाओं ने उन पर व्यापक असर किया। इन घटनाओं से उनके अंदर आजादी की ज्वाला बढ़ती ही चली गई।

1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान 2 /8 गढ़वाल राइफल को पेशावर भेज दिया गया। वहां चंद्र सिंह और उसके साथी छिपकर समाचारपत्रों में छपी घटनाओं को पढ़ते थे। 22 अप्रैल को को पेशवार आ रहे कांग्रेस के एक प्रतिनिधि मंडल को रोके जाने के विरोध में ,पेशवर में जुलुस निकाला गया और आम सभा हुई। अंग्रेजों के खिलाफ लोगों में काफी रोष था। उनपर पत्थर फेंके गए ,फ़ौज की गाड़ी को आग लगा दी गई। 23 अप्रेल को आंदोलन कर रही जंग कमांडर के साथ चंद्र सिंह ने भी गिरफ्तारी दी। पेशावर कांड के बाद चंद्र सिंह गढ़वाली को 3 साल के लिए जेल में डाल दिया गया। जेल में रहते हुए भी उन्होंने अपनी कर्मठता और देशभक्ति का परिचय दिया। जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान जारी रखा।

चंद्र सिंह गढ़वाली एक कुशल वक्ता और लेखक भी थे। उन्होंने कई पुस्तकें और लेख लिखे। उनकी प्रमुख पुस्तकों में "मेरा जीवन संघर्ष", "आत्म कथा", "पेशावर कांड" आदि शामिल हैं। चंद्र सिंह गढ़वाली का 1 अक्टूबर 1979 को निधन हो गया।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली एक महान देशभक्त और समाजसेवी थे। उन्होंने अपनी कर्मठता और देशभक्ति से देश को एक नई दिशा दी। उन्हें आज भी देश के लोग एक प्रेरणा के रूप में देखते हैं।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के प्रमुख योगदान

  • उन्होंने पेशावर कांड में अंग्रेजों के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी।
  • उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया।
  • उन्होंने कई पुस्तकें और लेख लिखकर देश की जनता को जागरूक किया।
  • उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की प्रेरणादायक बातें

  • "मैं एक सैनिक हूं और मेरा काम देश की सेवा करना है।"
  • "अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना हमारा कर्तव्य है।"
  • "देश की आजादी के लिए हर व्यक्ति को अपना योगदान देना चाहिए।"
  • "समाज के गरीब और शोषित वर्गों के उत्थान के लिए हमें काम करना चाहिए।"

चंद्र सिंह गढ़वाली से जुड़ा लोकप्रिय किस्सा

1929 में, चंद्र सिंह गढ़वाली छुट्टियों में अपने गाँव रोनौसेरा, पौड़ी, उत्तराखंड आए थे। उस समय, महात्मा गांधी बागेश्वर में एक रैली को संबोधित करने वाले थे। चंद्र सिंह, जो महात्मा गांधी के प्रशंसक थे, रैली में भाग लेने के लिए बागेश्वर गए। रैली में, चंद्र सिंह सादे कपड़ों में एक फौजी टोपी पहने हुए थे। जब महात्मा गांधी मंच पर आए, तो उन्होंने चंद्र सिंह की ओर इशारा करते हुए कहा, "क्या ये यहां मुझे डराने के लिए बैठे हैं?"

चंद्र सिंह ने जवाब दिया, "मैं यहां आपको डराने के लिए नहीं आया हूं। मैं यहां एक देशभक्त के रूप में आया हूं।"
फिर, चंद्र सिंह ने कहा, "अगर कोई मुझे दूसरी टोपी दे दे तो मैं यह टोपी उतार दूंगा और उसे पहनने के लिए तैयार हूं।"भीड़ में से किसी ने महात्मा गांधी की टोपी चंद्र सिंह की ओर उछाल दी। चंद्र सिंह ने टोपी को पकड़ा और उसे महात्मा गांधी की ओर फेंक दिया।

महात्मा गांधी ने चंद्र सिंह की ओर देखा और कहा, "तुमने यह टोपी क्यों फेंकी?"चंद्र सिंह ने कहा, "मैंने यह टोपी इसलिए फेंकी क्योंकि मैं आपका सम्मान करता हूं। मैं आपसे यह टोपी व्यक्तिगत रूप से मांगना चाहता था।"
महात्मा गांधी ने चंद्र सिंह को टोपी दी और कहा, "तुम एक अच्छे देशभक्त हो। मैं तुम्हारा सम्मान करता हूं।" चंद्र सिंह ने टोपी पहन ली और कहा, "मैं इस टोपी की कीमत चुकाऊंगा। मैं देश की आजादी के लिए अपना सर्वस्व दे दूंगा।"

चंद्र सिंह गढ़वाली ने अपने जीवन के अंत तक महात्मा गांधी के आदर्शों का पालन किया। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया और कई बार जेल भी गए। वे एक महान देशभक्त और समाजसेवी थे। इस किस्से में, चंद्र सिंह गढ़वाली की देशभक्ति और महात्मा गांधी के प्रति उनके सम्मान की झलक मिलती है।

ये भी पढ़े : पेशावर कांड 23 अप्रैल 1930 : कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली जी व उनके लड़ाकू साथियों की चेतना जिंदाबाद......

 प्रश्नोत्तरी (QUIZ) प्रतियोगिता ।

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