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Showing posts with the label उत्तराखंड के मंदिर और देवी देवता 🚩🚩🚩

आज श्री गंगा दशहरा छु

 आज श्री गंगा दशहरा छु , य ज्येष्ठ मास क शुक्ल पक्ष कि दशमी तिथि हूँ मनायी जा,  यस मान्यता छु कि य दिन गंगा मैया क  धरती में अवतरण है छी, य दिन लोग बाग गंगा नदि में स्नान करनी और मोक्ष क प्राप्त करनी,  हमर कुमाऊँ क्षेत्र में य दिन पंडित जू लोग एक द्वार पत्र बनुनी और अपुण यजमान लोगनक क दिनी जमे बज्र निवारक पांच ऋषियों क दगडं निम्न लिखीत श्लोक लिखी हुनी, और  बाज़ार मे ले मिलू य दशहरा पट्टा,  अगस्त्यश्च पुलस्त्यश्च वैशम्पायन एव च। जैमिनिश्च सुमन्तुश्च पञ्चैते वज्र वारकाः।।1।। मुने कल्याण मित्रस्य जैमिनेश्चानु कीर्तनात। विद्युदग्निभयंनास्ति लिखिते च गृहोदरे।।2।। यत्रानुपायी भगवान् हृदयास्ते हरिरीश्वरः। भंगो भवति वज्रस्य तत्र शूलस्य का कथा।।3।। और यस ले कही जा,  कि गंगा नदी क स्नान,  नर्मदा नदी क दर्शन, और शिप्रा नदी क नाम जपडंले   मोक्ष कि प्राप्ति है जा,  य दिन नहाते समय य मंत्र पढी जा,  रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम्। त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे॥ आपु सबनके गंगा दशहरे क ढैरो शुभकामनाएं, 

खुशखबरी , देवभूमि उत्तराखंड स्थित तुंगनाथ मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाएगा ।

https://commons.m.wikimedia.org/wiki/File:Tungnath_Lord_Shiva_Temple.jpg  पंचकेदारों में से एक उत्तराखंड के तुंगनाथ मंदिर को भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया जाना तय है।  यह घोषणा उत्तराखंड के पुरातत्व विभाग के प्रभारी अधिकारी देवराज सिंह रौतेला ने 6 मई, 2023 को की थी। यह राज्य के लिए एक महत्वपूर्ण विकास है, जो कई प्राचीन मंदिरों और धार्मिक स्थलों का घर है।  तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और समुद्र तल से 12,800 फीट की ऊंचाई पर स्थित एशिया का सबसे ऊंचा शिवालय है।  मंदिर तक पहुँचने के लिए, आगंतुकों को चोपता से 4 किमी पैदल चलना पड़ता है, जो रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर स्थित है।  मंदिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए समान रूप से एक लोकप्रिय गंतव्य है, इसकी आश्चर्यजनक वास्तुकला और आसपास के पहाड़ों के लुभावने दृश्य हैं।  तुंगनाथ मंदिर को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने का निर्णय स्वागत योग्य है, क्योंकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए इस प्राचीन स्थल को संरक्षित करने में मदद करेगा।  माना जाता है कि मंदिर 8वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व का है और उत्तराखं

जय गोलू देवता 🚩🚩🚩

जय बाला गोरिया न्यायकारी दुधाधारी गढ़चम्पावत को राजा झालराई को लाल तू, माता कालिंका को साँचो पूत, चितई चौथान में तू, घोड़ा संग घोड़ाखाल में तू,नमोव, चमड़खान और ताड़ीखेत में तू, सारे काली कुमाऊँ तेरो राज गोरिया, धदिये की धाद सुनछे, दुखिया को दुःख हरछे, दूधक दूध पाणिक पाणी करछे। साँच मनल जो त्यर नाम ल्योछ तू वैकि मनइच्छा पूरी करछे। जय बाला गोरिया राति ब्याव दिन दोपहर, तुमर नाम लिनु चार पहर। लगन लगे दिए, विघ्न हरि दिए। शोक संताप दूर करिये। मामू (सैम राजा) को साँचो भांजा, गुरु गोरखनाथ को सच्चो चेला, हिले दे पतवार लगे दे पार।।

आज है जानवरों के स्वास्थ्य से जुड़ा पर्व खतड़ुवा।

आज है जानवरों के स्वास्थ्य से जुड़ा पर्व खतड़ुवा। खतड़ुवा उत्तराखंड में सदियों से मनाया जाने वाला एक पशुओं से संबंधित त्यौहार है. भादों मास के अंतिम दिन गाय की गोशाला को साफ किया जाता है उसमें हरी नरम घास न केवल बिछायी जाती है. पशुओ को पकवान इत्यादि खिलाये भी जाते हैं. प्रारंभ से ही यह कुमाऊं, गढ़वाल व नेपाल के कुछ क्षेत्रो में मनाया जाने वाला त्यौहार है. इस त्यौहार में पशुओं के स्वस्थ रहने की कामना की जाती है. भादो मसांत के अगले दिन आश्विन संक्रांति के दिन सायंकाल तक लोग आपस में निश्चित एक बाखलि पर एक लंबी लकड़ी गाडते हैं और दूर-दूर से लाये सूखी घास लकड़ी झाड़ी जैसे पिरुल,झिकडे इत्यादि को उसके आस-पास इकट्ठा कर एक पुतले का आकार देते हैं. इसे ही खतडू या कथडकू कहा जाता है. जिसका सामान्य अर्थ किसी दुखदायी वस्तु से है. महिलाएं इस दिन पशुओं की खूब सेवा करती हैं . उन्हें हरा भरा पौष्टिक घास पेट भर कर खाने को दिया जाता है. घास खिलाते हुए महिलाएं  लोकगीत गाती है. औंसो ल्यूंलो , बेटुलो ल्योंलो , गरगिलो ल्यूंलो , गाड़- गधेरान है ल्यूंलो, तेरी गुसै बची रओ, तै बची रये, एक गोरू बटी गोठ भरी जाओ, एक ग

कटारमल सूर्य मंदिर

*उत्तराखंड अल्मोड़ा का सूर्य मंदिर* कटारमल सूर्य मन्दिर भारतवर्ष का प्राचीनतम सूर्य मन्दिर है,यह पूर्वाभिमुखी है तथा उत्तराखण्ड राज्य में अल्मोड़ा जिले के अधेली सुनार नामक गॉंव में स्थित है।इसका निर्माण कत्यूरी राजवंश के तत्कालीन शासक कटारमल के द्वारा छठीं से नवीं शताब्दी में हुआ था। यह कुमांऊॅं के विशालतम ऊँचे मन्दिरों में से एक व उत्तर भारत में विलक्षण स्थापत्य एवम् शिल्प कला का बेजोड़ उदाहरण है तथा समुद्र सतह से लगभग 2116 मीटर की ऊँचाई पर पर्वत पर स्थित है।ओडिशा के कोणार्क सूर्य मंदिर के बाद कटारमल सूर्य मंदिर सूर्य भगवान को समिर्पत देश का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर है। अल्मोड़ा शहर से 16 किमी दूर स्थित यह मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। मंदिर का परिसर 800 साल पुराना है, जबकि मुख्य मंदिर 45 छोटे-छोटे मंदिरों से घिरा हुआ है। हालांकि यह प्राचीन तीर्थ स्थल आज एक खंडर में तब्दील हो चुका है, बावजूद इसके यह अल्मोड़ा का एक प्रमुख पर्यटन स्थल है।