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19 मई २०२३ वट सावित्री व्रत: मान्यता और महत्व ।

 वट सावित्री व्रत: मान्यता और महत्व photo credit : https://www.abplive.com/lifestyle/religion/vat-savitri-vrat-story-significance-and-pujavidhi-2138904 वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना के लिए रखती हैं। इस पर्व को ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन मनाया जाता है, जो कि दिनांक 19 मई 2023 को है। इस दिन सावित्री व्रत और सत्यवान की कथा का पाठ किया जाता है और सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इस व्रत के द्वारा महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।इस व्रत के द्वारा महिलाएं अपने पतियों की लंबी आयु और उनके साथीत्व की कामना करती हैं। यह व्रत उनके पतियों के लिए आराम, खुशहाली, और शुभ समृद्धि की प्राप्ति का एक उपाय माना जाता है। हिन्दू धर्म में  वट सावित्री व्रत को अत्याधिक  मान्यता और महत्व प्राप्त है क्योंकि यह एक पत्नी की पति के प्रति वफादारी, प्रेम, और पूजा का प्रतीक है। इसके माध्यम से, महिलाएं अपने पतियों के लिए विशेष मान्यता और प्रेम व्यक्त करती हैं और उ

स्याल्दे बिखौती का मेला देखें फोटोज और वीडियो में । जय देवभूमि ।

 

लोकपर्व बिखोती विषुवत संक्राति 14 अप्रैल , जानिए उस लोकपर्व के बारे में जिसके मेले में एक प्रसिद्ध गीत की नायिका दुर्गा गुम हो गई थी ।

देवभूमि में चैत्र और वैशाख के महीनों में शीत को विदा कर लौटती सुगन्धित हवा, खिले हुए बाग-बगीचे, वातावरण में गूँजती कोयलों ​​और अन्य पक्षियों की आवाजें- सब प्रकृति के दूत बन जाते हैं मानो ये सब भी किसी विशेष दिवस की प्रतीक्षा में बैठे हो  , खैर  पहले एक छोटा स्मरण  - 90 के दशक में मोबाइल फोन ,सीडी इत्यादि कुछ नहीं हुआ करते थे संगीत सुनने का सिर्फ एक माध्यम था टेप रिकॉर्डर या फिर दूरदर्शन पर आने वाला चित्रहार, हमें याद है कि पिताजी टेप रिकॉर्डर में गोपाल बाबू गोस्वामी जी के खूब गाने सुना करते थे वे उनके ही नहीं पूरे कुमाऊं के पसंदीदा कलाकार थे और आज हमारे भी पसंदीदा कलाकार है। 90 के दशक में गोपाल बाबू गोस्वामी जी ने कई हिट गाने दिए उन्हीं में से एक गाना बहुत प्रसिद्ध हुआ "अलबेरे बिखोति मेरी दुर्गा हरे गे चान चान बेर मेरी यो कमरा पटेगे " अर्थात- इस वर्ष बिखोति के मेले में मेरी प्रिय दुर्गा गुम हो गई है और मैं उसे ढूंढते -ढूंढते इतना परेशान हो गया हूं कि मेरी कमर ही थक गई है । आज इस लेख के माध्यम से मैं आपको उत्तराखंड के इसी लोकपर्व बिखोति के बारे में बताऊंगा।उत्तराखंड अपनी भव्

भिटौली

हिन्दू धर्म के *चैत मास* में उत्तराखंड में विवाहित बहन की प्रति भाई और मायके वालों की भेंट के लिए प्रचलित एक पौराणिक परंपरा भिटौली...। भिटौली का मतलब है *मिलना या भेंट* करना| पुराने ज़माने में उत्तराँचल के दूर दराज के गांवों में जाने का कोई साधन नहीं था| लोग दूर दूर तक पैदल ही जाया करते थे| एक दिन में १५-२० मील का सफ़र तय कर लेते थे|   उतार-चढ़ाव से भरी पगडंडियों के रास्ते भी जंगलों व  नदी नालों के बीच में से हो कर जाते थे| जंगलों में अनेक प्रकार के जानवर भी हुआ करते थे| उस ज़माने में बच्चों की शादी छोटी उम्र में ही कर देते थे| नई ब्याही लड़की अकेले अपने मायके या ससुराल नहीं जा सकती थी| ऐसे में कोई न कोई पहुँचाने वाला चाहिए था| इस तरह कभी तो ससुराल वाले लड़की को मायके भेजते नहीं थे और कभी कोई पहुंचाने वाला नहीं मिलता था| हमारे *पहाड़ में चैत के महीने को काला महिना मानते हैं* और नई ब्याही लड़की पहले चैत के महीने में ससुराल में नहीं रहती है| उसको मायके में आना होता है| इस तरह ससुराल जाते समय भाई अपनी बहिन को या पिता अपनी बेटी को कुछ न कुछ उपहार दे कर ससुराल को बिदा करते थे|

जय गोलू देवता 🚩🚩🚩

जय बाला गोरिया न्यायकारी दुधाधारी गढ़चम्पावत को राजा झालराई को लाल तू, माता कालिंका को साँचो पूत, चितई चौथान में तू, घोड़ा संग घोड़ाखाल में तू,नमोव, चमड़खान और ताड़ीखेत में तू, सारे काली कुमाऊँ तेरो राज गोरिया, धदिये की धाद सुनछे, दुखिया को दुःख हरछे, दूधक दूध पाणिक पाणी करछे। साँच मनल जो त्यर नाम ल्योछ तू वैकि मनइच्छा पूरी करछे। जय बाला गोरिया राति ब्याव दिन दोपहर, तुमर नाम लिनु चार पहर। लगन लगे दिए, विघ्न हरि दिए। शोक संताप दूर करिये। मामू (सैम राजा) को साँचो भांजा, गुरु गोरखनाथ को सच्चो चेला, हिले दे पतवार लगे दे पार।।

आज है जानवरों के स्वास्थ्य से जुड़ा पर्व खतड़ुवा।

आज है जानवरों के स्वास्थ्य से जुड़ा पर्व खतड़ुवा। खतड़ुवा उत्तराखंड में सदियों से मनाया जाने वाला एक पशुओं से संबंधित त्यौहार है. भादों मास के अंतिम दिन गाय की गोशाला को साफ किया जाता है उसमें हरी नरम घास न केवल बिछायी जाती है. पशुओ को पकवान इत्यादि खिलाये भी जाते हैं. प्रारंभ से ही यह कुमाऊं, गढ़वाल व नेपाल के कुछ क्षेत्रो में मनाया जाने वाला त्यौहार है. इस त्यौहार में पशुओं के स्वस्थ रहने की कामना की जाती है. भादो मसांत के अगले दिन आश्विन संक्रांति के दिन सायंकाल तक लोग आपस में निश्चित एक बाखलि पर एक लंबी लकड़ी गाडते हैं और दूर-दूर से लाये सूखी घास लकड़ी झाड़ी जैसे पिरुल,झिकडे इत्यादि को उसके आस-पास इकट्ठा कर एक पुतले का आकार देते हैं. इसे ही खतडू या कथडकू कहा जाता है. जिसका सामान्य अर्थ किसी दुखदायी वस्तु से है. महिलाएं इस दिन पशुओं की खूब सेवा करती हैं . उन्हें हरा भरा पौष्टिक घास पेट भर कर खाने को दिया जाता है. घास खिलाते हुए महिलाएं  लोकगीत गाती है. औंसो ल्यूंलो , बेटुलो ल्योंलो , गरगिलो ल्यूंलो , गाड़- गधेरान है ल्यूंलो, तेरी गुसै बची रओ, तै बची रये, एक गोरू बटी गोठ भरी जाओ, एक ग

बूढ़ी दीपावली

अब तुम चली जाओगी पूरे वर्ष तेरा इंतज़ार किया अब मेरी फसल कट चुकी है मेरे भकार भर चुके है मेरे गोठ से दूध की नदियां बह रही है मेरे बच्चे इसी अनाज दूध दही घी से पोषित हुन्गे अब तुम जा रही हो तो फिर आनेतक मेरे दीए में तेल रखना इसी दीए से फिर स्वागत करूंगा ओ दीपावली तुम जल्दी आना....... बूढ़ी दीपावली :- ************* आज हरबोधनी एकादशी को कुमाऊँनी लोग बूढ़ी दीपावली के रूप में मनाते हैं। घर-घर में पुनः दीपावली मनाई जाती है। इस दिन कुमाऊँनी महिलाऐं गेरू मिट्टी से लीपे सूप में और घर के बाहर आंगन में गीले बिस्वार द्वारा लक्ष्मी नारायण एवं भुइयां (घुइयां) की आकृतियां चित्रित करती हैं। सूप के अंदर की ओर लक्ष्मी नारायण व तुलसी का पौधा तथा पीछे की ओर सूप में भुइयां ( यानि दुष्टता, इसकी आकृति वीभत्स रूप में होती है) को बनते हैं। गृहणियां दूसरे दिन ब्रह्म मुहूरत में इस सूप पर खील, बतासे, चुडे़ और अखरोट रखकर गन्ने से उसे पीटते हुए घर के कोने कोने से उसे इस प्रकार बाहर ले जाती हैं जैसे भुइयां को फटकारते हुए घर से निकाल रही हों। इस सब का तात्पर्य है कि लक्ष्मी नारायण का स्वागत करते हुए घर से दुष्टता, दरि