कुमाऊँ के प्रथम कवि श्री गुमानी पन्त जी लिखते हैं कि हिसालू की जात बड़ी रिसालू , जाँ जाँ जाँछे उधेड़ि खाँछे। यो बात को क्वे गटो नी माननो, दुद्याल की लात सौणी पड़ंछ। अर्थात हिसालू की नस्ल बड़ी नाराजगी भरी है,जहां-जहां जाती है, बुरी तरह खरोंच देती है, तो भी कोइ भी इस बात का बुरा नहीं मानता, क्योंकि दूध देने वाली गाय की लातें खानी ही पड़ती हैं। यहाँ महान कवि जिस हिसालू की बात कर रहे है वह एक कांटेदार परन्तु बहुत ही गुणों से भरपूर एक प्रशिद्ध पौधा है जिसका सिर्फ फल ही नहीं अपितु पूर्ण पौधा ही औषधीय गुणों से भरपूर है , इस लेख में आज हम इसी पहाड़ी जंगली फल हिसालू की चर्चा करेंगे। हिसालू का वैज्ञानिक नाम रुबस एलिप्टिकस / Rubus ellipticus , है इसे आमतौर पर हिमालयी ब्लैकबेरी के रूप में जाना जाता है, देवभूमि उत्तराखंड में पाए जाने वाले सैंकड़ो फल - फूलों औरऔषधीय पादपो में हिसालू बहुत विशेष स्थान रखता है। यह जंगली और रसदार फल न केवल दिखने में आकर्षक है बल्कि अपने औषधीय गुणों के लिए भी प्रसिद्ध है। यह पौधा इसकी मजबूत वृद्धि और स्वादिष्ट बेरी के प्रचुर उत्पादन के लिए जाना जाता है। रूबस एलिप्
शिक्षा से ही बदलाव होगा ......