हाल ही में स्कूल खोलने को लेकर राज्य सरकार ने सुझाव मांगे थे। अगर इसका सीधा जवाब माँगा जाता तो वह तो यह था कि यह सत्र अकादमिक दृष्टि से शून्य सत्र घोषित कर दिया जाना चाहिए और महामारी पर पूर्ण नियंत्रण तक स्कूलों को नहीं खोला जाना चाहिए। पर, जो जमीनी हालात हैं,उसमें इतना सीधा जवाब सम्भव नहीं। भारत भर में शिक्षा का एक वर्गीय ढाँचा भी है। इस वर्गीय ढाँचे के शीर्ष पर महंगे शहरी कॉन्वेंट हैं,और सबसे निचले पायदान पर ग्रामीण सरकारी विद्यालय। आप शहरों में देखिए तो इन महंगे स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के साधन संपन्न होने के कारण उनको सही रणनीति के साथ ऑनलाइन शिक्षण का लाभ लगातार मिल रहा है। इनके पास संसाधन हैं, स्कूल बंद होने के बाद से प्राइवेट ट्यूटर हैं। इसके बाद मध्यवर्गीय स्कूल हैं। यहाँ पढ़ रहे बच्चों के माँ बाप भी मर खप के रेस में बने रहने को संसाधन जुटा रहे हैं। घर में अगर एक ही लेपटॉप है तो इन दिनों वो बच्चों को समर्पित है। अंत में सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थी हैं। जिनमें ऑनलाइन योजनाएं तो हैं,पर उनका जमीन में पहुँच पाना सम्भव