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Showing posts with the label दिवस

कुदरत ने ये सिफ़त दुनिया में बस औरत को बक्शी है , माँ पागल भी हो जाये तो बच्चे याद रहते हैं

  आज 14 मई को पुरे विश्व भर में मातृ दिवस या मदर डे मनाया गया यूं तो मां को याद करने के लिए किसी विशेष दिन की आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि मैं स्वयं में खास होती हैं त्याग और प्रेम की दैवीय मूर्ति । लेकिन फिर भी मां को कुछ खास एहसास दिलाने के लिए पूरे विश्व में यह दिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । माताओं  का  सम्मान करने के लिए यह एक विशेष समर्पित अवसर है।  यह उन   महान महिलाओं के लिए प्यार, आभार और प्रशंसा व्यक्त करने का दिन है, जिन्होंने हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चाहे वह हमारी माँ हो , दादी-नानी हों या मातृ तुल्य कोई अन्य महिला हों, मदर्स डे या मातृ दिवस उनके बलिदानों, बिना शर्त प्यार और अटूट प्रेम को स्वीकार करने का अवसर प्रदान करता है। यह हमारे जीवन पर माताओं के अथाह प्रभाव को प्रतिबिंबित करने और उन्हें पोषित और प्यार महसूस कराने का समय है। मदर्स डे या मातृ दिवस दुनिया भर के कई देशों में माताओं  का सम्मान करने के लिए मनाया जाने वाला एक महान  उत्सव है। यह उन असाधारण महिलाओं के लिए प्यार, आभार और प्रशंसा व्यक्त करने के लिए समर्पित दिन है जिन्होंने हमारे जी

10 मई 1857 को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ़ शुरू हुई पहली जंग-ए-आज़ादी को याद करते....साझी शहादत-साझी विरासत वाले मुल्क में गंगा-जमुनी तहजीब के पक्षधरों के लिए 1857 का वह विद्रोह हमेशा प्रेरणा स्रोत बना रहेगा।

जय हिन्द साथियों , वंदेमातरम् , इन्कलाब जिंदाबाद ! 1857 के संग्रामी अमर रहें 1857 का भारतीय विद्रोह, जिसे भारतीय विद्रोह, सिपाही विद्रोह या भारतीय स्वतंत्रता का पहला युद्ध भी कहा जाता है, भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ एक प्रमुख विद्रोह था जो 10 मई, 1857 को शुरू हुआ था। यह महान विद्रोह उस वक़्त  धार्मिक और सांस्कृतिक शिकायतों, आर्थिक शोषण और ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश सहित अनेको कारकों के कारण विस्फोटित हुआ । विद्रोह के लिए तत्काल ट्रिगर नए राइफल कारतूसों की शुरुआत थी, जो कि जानवरों की चर्बी से सजी होने की अफवाह थी, जिसने हिंदू और मुस्लिम दोनों सिपाहियों (ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में भारतीय सैनिक) के धार्मिक विश्वासों को ठेस पहुंचाई। इस विद्रोह की सैन्य असफलता के बावजूद यह कहीं माइनों में सफल आंदोलन था जहां एक और इसने हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल कायम की साथ ही इसने यह भी सिद्ध किया की क्रांति का अंत  सुखद परिवर्तन होता है । 1857 के भारतीय विद्रोह को भारतीय इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण माना जाता है, जो भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अंत की शुरुआत का प्रतीक है। इस

बुद्ध पूर्णिमा : इस कष्टों से भरे संसार में स्वयं के होने का कारण जानते है आप ? बुद्ध होना आसान नहीं है।

बौद्ध धर्म आज दुनिया में सबसे व्यापक धर्मों में से एक है, जिसके अनुमानित 500 मिलियन अनुयायी हैं। बौद्ध धर्म की स्थापना सिद्धार्थ गौतम ने की थी, जिनका जन्म प्राचीन भारत में 563 ईसा पूर्व के आसपास हुआ था। सिद्धार्थ गौतम को आमतौर पर बुद्ध के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है "जागृत " या "प्रबुद्ध व्यक्ति"। बुद्ध पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जन्म, ज्ञान और मृत्यु का उत्सव है ,यह पर्व तीन बार धन्य पर्व के रूप में भी जाना जाता है। यह त्योहार दुनिया भर के बौद्धों द्वारा मनाया जाता है और बुद्ध की शिक्षाओं और ज्ञान की दिशा में उनकी यात्रा की याद दिलाता है। इस लेख में, हम बुद्ध बनने की यात्रा और कैसे यह एक आसान मार्ग नहीं है, पर चर्चा करेंगे। बुद्ध बनने के लिए बहुत अधिक तपस्या और ज्ञान की आवश्यकता होती है, और हम बुद्ध की विभिन्न शिक्षाओं का पता लगाएंगे जो हमें इस मार्ग की ओर ले जाती हैं। बुद्ध बनने की यात्रा : बौद्ध धर्म हमें सिखाता है कि बुद्ध होना या बनना आसान नहीं है। एक बुद्ध वह है जिसने ज्ञान प्राप्त किया है, और यह केवल आध्यात्मिक अभ्यास और आत्म-अनुशासन के वर्षों के माध्यम

पेशावर कांड 23 अप्रैल 1930 : कामरेड चंद्र सिंह गढ़वाली जी व उनके लड़ाकू साथियों की चेतना जिंदाबाद......

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने ब्रिटिश सैनिक के रूप में काम करते हुए हिंदू मुस्लिम एकता का अद्वितीय परिचय दिया । अपने सैन्य करियर से सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का फैसला किया और कई विद्रोहों - सामाजिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। 1930 में, ब्रिटिश सरकार ने भारत में अपना शासन जारी रखने के लिए एक रणनीति के रूप में "नमक कानून" बनाया था, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ देशव्यापी विरोध को जन्म दिया।  वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने 23 अप्रैल, 1930 को पेशावर के वोक्स हॉल में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक सफल विद्रोह का नेतृत्व किया। इस विद्रोह के बाद, वह अपनी जान जोखिम में डालकर पहाड़ों पर चले गए। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनके संघर्षों और बलिदानों के कारण, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को "पेशावर कांड के नायक" के रूप में भी जाना जाता है।  उनकी विरासत और 1930 का पेशावर विद्रोह वर्तमान राजनीतिक माहौल के आलोक में आज और भी अधिक प्रासंगिक हैं । 23 अप्रैल, 1930 को भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक ऐतिहासिक घटना घट

26 मार्च ‘चिपको आंदोलन’ की वर्षगांठ

 एक कहानी सुने पहले ... यह घटना 1974 ई० की है। गोपेश्वर में रैणी नामक वन में कुछ लोग आए। जब वे वृक्ष काटने के लिए तैयार होते हैं तब एक महिला-आगे आकर उन लोगो को ललकारती है और कहती है -  ऐसा मत करो यह कहकर एक वृक्ष को पकड़ लेती है। परन्तु वे मजदूर वृक्ष काटने के लिए आगे आ जाते हैं और वृक्षों पर आरी कुल्हाड़ी इत्यादि चलाने लगते है और वृक्षों को काटना प्रारंभ करने लगते है । तब वह महिला अपने महिला मंगल दल को बुलाती है और कहती है-सभी जल्दी आओ और एक-एक वृक्ष को आलिंगन करो। सभी महिलाएँ वैसा ही करती हैं।तभी वन विभाग के एक कर्मचारी उसके ऊपर गोली चलाने के लिए आगे दौड़ता है। उसको देखकर वह गरजती है और ललकार कर कहती है-गोली चलाकर हमें काट दो मार दो चाहे हम तुम्हे अपने जंगल  नहीं काटने देंगे । यदि वन सुरक्षित होगा तो ही हम सब भी सुरक्षित होंगे। वन हमारा मायका है। यह सुनकर वे सब रुक जाते हैं और उस गाँव से निकल जाते हैं। क्या आप  जानते हो। यह साहसी महिला कौन थी। यह गौरा देवी थी। इसका जन्म चमोली जिले के लाता गाँव में हुआ। इन्होने  पर्यावरण संरक्षण के लिए जगह  जगह जन-जागरण किया और 'चिपको वूमन' ना

शहीदी दिवस 23 मार्च

"तीन परिंदे उड़े तो आसमान रो पड़ा, वो हंस रहे थे किन्तु हिंदुस्तान रो पड़ा" देश की स्वतंत्रता व स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले आजादी के महानायक #शहीदभगतसिंह, #राजगुरु और #सुखदेव जी  के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि..  ‘मेरा रंग दे बसंती चोला, मेरा रंग दे बसंती चोला…’ न जाने कितनी बार आजादी का यह तराना हमने सुना है। लेकिन जब भी इसे सुनते हैं तो दिलों में जोश पैदा होता है! शायद इसकी वजह वो तीन नौजवान हैं, जिनके मुस्कान से भरे चेहरे इस गीत के साथ जुड़े हैं। भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव, जिन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में 23 मार्च 1931 के दिन फांसी दी गई थी। ‘शहीद दिवस’ ऐसे ही वीर-सपूतों को सलाम करने का दिन है, तो आइए ‘सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है’ कुछ ऐसे ही कोट्स और संदेशों के जरिए इन शहीदों को नमन करें। भारत को आजादी दिलाने के लिए देश के सपूतों ने कई बलिदान दिए। कई तरह की यातनाएं सही। उन्ही बलिदानों में से सबसे महान बलिदान शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का माना जाता है। ये बलिदान ह

भिटौली

हिन्दू धर्म के *चैत मास* में उत्तराखंड में विवाहित बहन की प्रति भाई और मायके वालों की भेंट के लिए प्रचलित एक पौराणिक परंपरा भिटौली...। भिटौली का मतलब है *मिलना या भेंट* करना| पुराने ज़माने में उत्तराँचल के दूर दराज के गांवों में जाने का कोई साधन नहीं था| लोग दूर दूर तक पैदल ही जाया करते थे| एक दिन में १५-२० मील का सफ़र तय कर लेते थे|   उतार-चढ़ाव से भरी पगडंडियों के रास्ते भी जंगलों व  नदी नालों के बीच में से हो कर जाते थे| जंगलों में अनेक प्रकार के जानवर भी हुआ करते थे| उस ज़माने में बच्चों की शादी छोटी उम्र में ही कर देते थे| नई ब्याही लड़की अकेले अपने मायके या ससुराल नहीं जा सकती थी| ऐसे में कोई न कोई पहुँचाने वाला चाहिए था| इस तरह कभी तो ससुराल वाले लड़की को मायके भेजते नहीं थे और कभी कोई पहुंचाने वाला नहीं मिलता था| हमारे *पहाड़ में चैत के महीने को काला महिना मानते हैं* और नई ब्याही लड़की पहले चैत के महीने में ससुराल में नहीं रहती है| उसको मायके में आना होता है| इस तरह ससुराल जाते समय भाई अपनी बहिन को या पिता अपनी बेटी को कुछ न कुछ उपहार दे कर ससुराल को बिदा करते थे|

23 मार्च शहीदी दिवस

निर्दयी आलोचना और स्वतंत्र सोच विकसित करें। 🇮🇳🇮🇳🇮🇳 शहीद भगतसिंह ने फांसी पर चढने से कुछ समय पहले कहा था _”जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती हे तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से वे हिचकिचाते हें| इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रन्तिकारी स्पिरिट पैदा करने की जरूरत होती हे ,अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता हे, लोगों को गुमराह करनेवाली प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ जनता को गलत रास्ते पर ले जाने में सफल हो जाती हें|इससे इन्सान की प्रगति रुक जाती हे और उसमें गतिरोध आ जाता हे| इस परिस्थिति को बदलने के लिए जरूरी हे कि क्रांति की स्परिट ताजा की जाय, ताकि इंसानियत की रूह में एक हरकत पैदा हो"....  स्वतंत्र विचारक (यहां हम बच्चों की बात कर रहे हैं )निर्धारित कर सकते हैं कि वे कुछ कैसे पूरा करना चाहते हैं, भले ही कोई उन्हें बताए कि यह कैसे किया जाता है। *वे दूसरों से सहायता मांगे बिना स्वतंत्र रूप से समस्याओं को हल करने की अधिक संभावना रखते हैं।* स्वतंत्र विचारक निर्देशों का पालन करके अकेले कुछ करना शुरू कर सकते हैं और फिर प्रक्रिया के दौरान

रक्षाबंधन पर्व

  *रा.प्रा.विद्यालय बजेला* हमारी नई शिक्षा नीति में व्यवहारिकता व कौशल विकास पर जोर दिया गया है , नीति अनुसार  छठी कक्षा के बाद से ही बच्चो को वोकेशनल कोर्स कराया जाएगा इसके लिए छात्रों को छठी कक्षा के बाद से ही इंटर्नशिप कराई जाएगी । नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य बच्चे को कुशल बनाने के साथ-साथ *जिस भी क्षेत्र में वह रूचि रखता है,उसी क्षेत्र में उन्हें प्रशिक्षित कराना है।* यह छात्रों की सोच व रचनात्मक क्षमता को बढ़ाकर सीखने की प्रक्रिया को और अधिक कुशल बनाने पर जोर देती है अर्थात यह बच्चों के कौशलों के विकास पर अत्याधिक महत्व देती है यह कौशल कुछ भी हो सकते हैं जो उसके जीवन में ऊर्ध्वगति लाएं ( गुणवत्तापूर्ण शिक्षा)। यह बच्चों को किताबी कीड़ा या रट्टा लगाने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाती है ,यह उनकी रचनात्मकता को बढ़ाने पर जोर देती है इसमें बच्चों को क्या सीखना है सिर्फ इस बात पर नहीं बल्कि उन्हें कैसे सिखाना है इस बात पर भी जोर दिया गया है । *आज रक्षाबंधन* के पर्व पर बच्चों ने अपने परिवेश से उपलब्ध सामग्री जैसे चीड़ के पत्ते, देवदार के पत्ते , स्प्रूस के पत्ते थूजा के पत्ते( मोरपंखी )

जन्मदिन समारोह , रा.प्रा. वि. बजेला धौलादेवी अल्मोड़ा ।

इसीलिए तो बच्चों पर नूर बरसता है, शरारतें तो करते है… साजिशें नहीं करते ! Happy Birthday Khushi

एकता दिवस 2019

*एकता दिवस व संकल्प दिवस* रा.प्रा. वि.बजेला विकासखंड धौलादेवी  त्रिपुरा में गरबा खेलें और झारखंड में लोह्ड़ी, अरुणाचल में खेली जाये,वृंदावन की होली, नही कोई भेद भाव रखना ,एकता से रहना है एक भारत, श्रेष्ठ भारत, भारत को फिर से बनाना है। उपरोक्त पंक्तियों का ही सार लेकर ,सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की 144वीं जयंती के मौके पर 2014 से हर साल 31 अक्टूबर को देश में राष्ट्रीय एकता दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन लोग रन फॉर यूनिटी (Run For Unity) में भाग लेते हैं। इस बार पीएम मोदी (Narendra Modi) ने लोगों से आग्रह किया है कि वे बड़ी संख्या में इस अभियान का हिस्सा बने। रन फॉर यूनिटी एकता का प्रतीक है जो यह दिखाता है कि देश एक दिशा में, एक भारत, श्रेष्ठ भारत के लक्ष्य के साथ सामूहिक रूप से आगे बढ़ रहा है।  इसी क्रम में आज विद्यालय विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया जिसमें प्रार्थना सभा में बच्चों को सरदार वल्लभभाई पटेल एवं इंदिरा गांधी जी के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई तदुपरांत रन फॉर यूनिटी का आयोजन किया गया व बच्चो ने पोस्टर, स्लोगन, कविता पाठ इत्यादि कार्यक्रमों का आयोजन किया सरदार पटेल के जन्म

राष्ट्रीय एकता दिवस समारोह

*राष्ट्रीय एकता दिवस समारोह* आज राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला धौलादेवी  मे आजाद भारत को एकता के सूत्र में पिरोने वाले लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल जी की जयंती मनाई गई इस उपलक्ष्य मे *विशेष प्राथना* सभा का आयोजन किया गया तथा भारत की अखंडता और एकता को अक्षुण्ण रखने हेतु *सामूहिक शपथ ग्रहण* की गई तदुपरांत राष्ट्रीय एकता को प्रबल करते गीतों का समूह गान किया गया तथा सरदार पटेल जी के चित्र पे माल्यार्पण किया गया व बच्चों को सरदार पटेल जी के व्यक्तित्व के बारे मे बताया गया व इस दिवस के महत्व को बताते हुए कहा गया कि  राष्ट्रीय एकीकरण विभिन्न जातियों, संस्कृतियों, धर्मों और क्षेत्रों से रहने के बाद भी एक मजबूत और विकसित राष्ट्र के निर्माण के लिये देश के लोगों के बीच आम पहचान की भावना को दर्शाता है। यह विविधता में एकता और महान स्तर करने के लिए लोगों के बीच एकता की भावना को बढ़ावा देता है। यह अलग समुदाय के लोगों के बीच एक प्रकार की जातीय और सांस्कृतिक समानता लाता है।विभागीय निर्देशो अनुसार दौड़ *रन फ़ॉर यूनिटी* मे बच्चों ने भाग लिया व पूरे उत्साह के साथ रन फ़ॉर यूनिटी के लिए दौड़ लगाई कक्षा 5 के