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पदं पदं प्रवर्धते...(प्रयाण गीतम्)

पदं पदं प्रवर्धते...(प्रयाण गीतम्)  पदं पदं प्रवर्धते,  किशोर गुल्म सैनिकः! जयत्व कामनायुतः विजेतृगीत गायकः!! स्वतन्त्रता प्रवर्तकः स्वतन्त्रदेश रक्षकः! स्वतन्त्रता-सुवर्ण-जन्य- वर्ण-मोद-वर्धकः!! अशोक चक्र शोभितः करे ध्वजः त्रिवर्णकः!  हृदि प्रतापवीरता  अदम्य साहसान्वितः!! न मार्गरोधने क्षमाः  समुद्र पर्वतादिकाः ! समस्तवैरिनाशकः  यथा सुवीर सायकः!!  शब्दार्थ गुल्म = सैन्यदल विजेतृ = विजेता मोद = प्रसन्नता  त्रिवर्णिकः = तीन वर्ण वाला / तिरंगा अदम्य = जिसका दमन न किया जा सके साहसान्वित = साहसयुक्त साहसी रोधने = रोकने में सुवीरसायकः = अच्छे वीरों के बाण प्रतापवीरता = राणाप्रताप की वीरता स्वतन्त्रता-सुवर्ण-जन्य-वर्ण-मोद-वर्धकः = स्वतन्त्रता रूपी स्वर्ण से उत्पन्न  स्वर्णिम आनन्द को बढ़ाने वाला प्रवर्धते = आगे बढ़ रहा है क्षमाः = समर्थ। अनुवाद पदं पदं …………………………………….. विजेतृगीतगायकः ।।1।। जय की कामना से युक्त, विजय के गीत गाने वाले किशोर  सैन्यदल सैनिक कदम-कदम बढ़ाते हैं। स्वतन्त्रता ………………………………… पदं प्रवर्धते ।।2।। ये (किशोर सैन्यदल सैनिक) स्वाधीनता के प्रवर्तक हैं।  ये स्वाधीन देश के रक्

विद्यालय में संस्कृत शिक्षा का महत्व: विरासत को संरक्षित करना, एकता को बढ़ावा देना और समग्र विकास का पोषण करना।

संस्कृत संस्कार की भाषा होने के साथ साथ यह  जोड़ने का कार्भाय भी करती है भारत जैसे विविधताओं से भरे राष्ट्र को  एकीकृत  करने की भूमिका  भी निभाती है। जरा  कल्जपना करें जब कोई भारत भर में यात्रा शुरू करता है और दक्षिण भारत पहुंचता है, तो उन्हें "पानी" और "भोजन" जैसे सामान्य शब्दों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है। हालाँकि, दक्षिण भारत में बहुत कम लोग इन शब्दों को समझते हैं। पानी के लिए उनके अपने शब्द हैं जैसे "तन्नी," "वेल्लम" और "नीरू"। लेकिन अगर कोई "जल" (पानी) और "भोजन" (भोजन) जैसे संस्कृत शब्दों का उपयोग करता है, तो वे सार्वभौमिक रूप से समझ जाएंगे, यह सुनिश्चित करते हुए कि कोई भूखा या प्यासा नहीं रहेगा। पूरे भारत में, बहुसंख्यक संस्कृत शब्दों जैसे "चित्रम" (चित्र), "फलम" (फल), "चायपणम" (चाय), और "मधुरम" (मीठा) को समझते हैं। भाषा केवल अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में ही नहीं बल्कि संस्कृति के वाहक के रूप में भी कार्य करती है। संस्कृत भाषा के क्षेत्र में, यह एक शक्तिशाली और प्र