स्थावरं जगमं व्याप्तं येन कृत्स्नं चराचरम् । तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ गुरु वह प्रभु हैं, जो स्थावर (जो जमीन पर स्थित है) और जगम (जो गतिमान है) सभी प्राणियों में व्याप्त हैं। वे सभी चराचर (चलने वाले और अचल) प्राणियों को शास्त्रों और ज्ञान के द्वारा प्रकाशित करके हमें प्रकट करते हैं। हम श्रीगुरुदेव को नमस्कार करते हैं जिन्होंने हमें उन्हीं तत्पद की प्राप्ति कराई है।श्रीगुरुदेव हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे हमें ज्ञान, दिशा, आदर्शों की प्राप्ति कराते हैं और हमें सभी प्राणियों के बीच संघ बनाते हैं। गुरु उस ज्योति की ओर प्रकाशित करते हैं, जो हमें उन्हीं तत्पद की ओर ले जाती है। इसलिए, हम श्रीगुरुदेव को अपना आदर्श मानते हैं और उनका सम्मान करते हैं। गुरुपूर्णिमा का यह श्लोक हमें अपने गुरु के प्रति आभार और सम्मान की महत्वपूर्णता को याद दिलाता है। हमें गुरु को स्थानीयता और सर्वव्याप्ति का प्रतीक मानना चाहिए और उनके आदर्शों को अपने जीवन का आधार बनाना चाहिए। इस श्रद्धा और सम्मान के साथ, हम अपने गुरु के आदेशों का पालन करेंगे और उनकी कृपा का लाभ उठाएंगे, जो हमें
शिक्षा से ही बदलाव होगा ......