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जरा याद करो क़ुरबानी , जलियांवाला बाग नरसंहार की याद: भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक गंभीर अध्याय।

13 अप्रैल, 1919, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे काले दिनों में से एक है - जलियांवाला बाग नरसंहार, जिसे अमृतसर नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है। यह दुखद घटना पंजाब के मध्य में स्थित अमृतसर शहर में घटी, जिसने देश की सामूहिक स्मृति पर एक अमिट निशान छोड़ दिया। जनरल रेजिनाल्ड डायर की कमान के तहत, ब्रिटिश सैनिकों ने हजारों निहत्थे पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की एक शांतिपूर्ण सभा पर गोलियां चला दीं, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा लगाए गए दमनकारी उपायों के खिलाफ विरोध करने के लिए एक सार्वजनिक उद्यान, जलियांवाला बाग में एकत्र हुए थे। . हिंसा के इस भयावह कृत्य की पृष्ठभूमि ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में नागरिक स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिए पारित किया गया कठोर रोलेट अधिनियम था। इस अधिनियम ने बिना किसी मुकदमे के व्यक्तियों की गिरफ्तारी और हिरासत की अनुमति दी, जिससे पूरे देश में व्यापक आक्रोश और विरोध प्रदर्शन हुआ। जलियांवाला बाग में शांतिपूर्ण प्रदर्शन इसी असंतोष की एक मार्मिक अभिव्यक्ति और न्याय की पुकार थी। हालाँकि, जनरल डायर और उसके सैनिकों की प्रतिक्रिया निर्ममता से कम न

देवभूमि उत्तराखण्ड के अमर सपूत, महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी की पुण्यतिथि पर कोटिश: नमन। छात्रों के लिए लेख और प्रश्नोत्तरी (QUIZ) प्रतियोगिता ।

  वीर चंद्र सिंह गढ़वाली: एक कर्मयोगी देवभूमि उत्तराखंड में वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी जैसे कर्मयोगी का जन्म हुआ। जिन्होंने अपनी कर्मठता और देशभक्ति से देश को एक नई दिशा दी। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म 25 दिसंबर 1891 को पौड़ी जिले के चौथान पट्टी के गावं रोनौसेरा में हुआ था। उनके पिता जाथली सिंह एक किसान और वैद्य थे। बचपन में उन्हें स्कूल जाने का मौका तो नहीं मिला लेकिन एक ईसाई अध्यापक से प्राथमिक शिक्षा प्राप्ति की। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का असली नाम चंद्र सिंह भंडारी था। 18 वर्ष की आयु में चंद्र सिंह गढ़वाल राइफल के 2 /39 बटालियन में भर्ती हो गए। अंग्रेज सैनिक के रूप में 1915 में मित्र राष्ट्रों की तरफ लड़ने के लिए फ़्रांस गए। वहां फ्राँसियों पर अंग्रेजो के अत्याचारों से उनकी अंग्रेज सरकार के लिए सहानुभूति कम हो गई। 1920 में प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने यहाँ की कई पलटने तोड़ दी। अनेक गढ़वाली सैनिको निकाल दिया। कई पदाधिकारियों को सैनिक बना दिया। अंग्रेजो के इस भेदभाव निति से चंद्र सिंह भी हवलदार से सैनिक बन गए। इस दौरान देश और विश्व के घटनाक्रम को उन्होंने नजदीक से देखा। इस