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देवभूमि का रम्माण उत्सव : मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत

🚩🚩रम्माण🚩🚩 भारत की संस्कृति और धर्म उसकी परंपराओं और उनसे जुड़ी विभिन्न आयोजनों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। रम्माण एक ऐसा सांस्कृतिक और आर्थिक अवसर है, जो स्थानीय लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसके साथ ही, संस्कृति और धर्म के इस महत्वपूर्ण अंग के विकास में आदि गुरु शंकराचार्य जी ने पूरे देश में चार मठों की स्थापना की। जोशीमठ के आसपास, शंकराचार्य जी के आदेश पर उनके कुछ शिष्यों ने पौराणिक मुखौटों से नृत्य करके लोगों में चेतना जगाने का प्रयास किया था। धीरे-धीरे, इन क्षेत्रों में यह एक महत्वपूर्ण समाज का अभिन्न अंग बन गया। चमोली जिले के गाँव सलूड-डुंग्रा में बैसाखी पर आयोजित होने वाला “रम्माण” उत्तराखंड की इसी  बहुरंगी कला और संस्कृति का परिचय पूरी दुनिया में कर रहा है। “रम्माण” में नृत्य नाटिका के द्वारा रामायण के विभिन्न प्रसंगों, पौराणिक और ऐतिहासिक गाथाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यूनेस्को (UNESCO) ने “रम्माण” को विश्व धरोहर घोषित किया है, यह हम सभी उत्तराखंडियों के लिए गर्व की बात है।  रम्माण  उत्तराखंड के चमोली जिले के सलूर-डूंगरा के जुड़वां गांवों में मनाया जाने वाला एक अनूठा